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दो जून की रोटी - लेखनी प्रतियोगिता -03-Jun-2022


दो जून की रोटी बड़ा सताती है
इंसान को हैवान बना जाती है।

 दाने-दाने को गरीब तरसता है
भूखा सो पानी से पेट भरता है।

कोमल नारी सबला बन जाती है
ईटों व सीमेंट का बोझ उठाती है।

नंगे पाँव धूप में चलती जाती है
पैरों के छालों से भी न हारती है।

रोटी पकाने वाली फावड़ा चलाती है
बंजर धरती पर भी हरियाली लाती है।

कठिन परिश्रम से न कभी घबराती है
स्वयं कष्ट सह सदा दायित्व निभाती है।

विषम परिस्थिति चमत्कार दिखाती है
इंसान व पशु के बीच अंतर मिटाती है।

पशु भी तब ममता का कर्ज़ चुकाता है
इंसानों से ज़्यादा वफादारी निभाता है।

गरीब का दुख का साथी बन जाता है
अपने बने गैर , गैर अपना हो जाता है।

दो जून की रोटी अनेक रंग दिखाती है
नये अनुभवों के संग जीना सिखाती है।

डॉ. अर्पिता अग्रवाल 

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11 Comments

Saba Rahman

04-Jun-2022 11:27 PM

Osm

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Priyanka06

04-Jun-2022 10:55 PM

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति मेम

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Seema Priyadarshini sahay

04-Jun-2022 05:38 PM

बेहतरीन

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